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गुरुवार, 10 नवंबर 2011

वैदिक काल में पिता-पुत्री संबंध उचित माने जाते थे


हिदुइजम धर्म या कलंक दे सौजन्य से :- 
वैदिक समाज में मादक द्रव्यों व नशों का प्रयोग,व्यसन, जुआ, जादू-टोना, अनैतिकताएं, अन्धविश्वास और मूर्खतापूर्ण रूढ़ियाँ व्यापक थीं. बौद्धकाल पूर्व के आर्यों में लैंगिक (sexual) अथवा विवाह-संबंधों के प्रति कोई प्रतिबन्ध नहीं  था. वैदिक समाज में पिता-पुत्री और बाबा-पोती में मैथुन समंध उचित माने जाते थे. वसिष्ठ ने अपनी पुत्री शतरूपा से विवाह रचाया, मनु ने अपनी पुत्री इला से विवाह किया, जहानु ने अपनी बेटी जहान्वी से शादी की, सूर्य ने अपनी बेटी उषा से ब्याह किया । धहप्रचेतनी और  उस के पुत्र सोम दोनों ने सोम की बेटी मारिषा से संभोग किया. दक्ष ने अपनी बेटी अपने ही पिता ब्रह्मा को विवाह में दी और इन वैवाहिक-संबंधों से नारद का जन्म हुआ. दोहित्र ने अपनी २७ पुत्रियों को अपने ही पिता सोम को संतान-उत्पत्ति के लिए सौंपा.
आर्य खुले आम सब के सामने मैथुन करते थे. ऋषि कुछ धार्मिक रीतियाँ करते थे जिन्हें वामदेव-विरत कहा जाता था. ये रीतियाँ यज्ञ-भूमि पर ही की जाती थी. यदि कोई स्त्री पुरोहित के सामने सम्भोग करने की इच्छा प्रकट करती थी तो वह उसके साथ वहीँ सब के सामने मैथुन करता था. उदाहरांत: पराशर ने सत्यवती और धिर्घत्मा के साथ (यज्ञ-स्थल ही पर) सम्भोग किया." आर्यों में योनि नामक एक प्रथा प्रचलित थी.योनि शब्द का जैसा अर्थ अब लगाया जाता है वैसा शुरू में नहीं था शब्द योनि का मूलत: अर्थ है -  घर. अयोनी का अर्थ है ऐसा गर्भ जो घर के बाहर ठहराया गया हो. अयोनी-प्रथा में कोई बुराई नहीं मानी जाती थी. सीता और द्रोपदी दोनों का जन्म अयोनि (यानी घर से बाहर) हुआ था."
आर्यों में औरत को भाड़े (किराये) पर दिया जाता था. माधवी की कहानी इस का एक स्पष्ट प्रमाण है. राजा ययाति ने अपनी बेटी माधवी को अपने गुरु गालव को भेंट में दे दिया. गालव ने माधवी को तीन राजाओं को भाड़े पर दिया. इस के पश्चात गालव ने माधवी का विवाह विश्वामित्र से कर दिया वह विश्वामित्र के पास उस समय तक रही जब तक उस ने एक पुत्र को जन्म नहीं दिया, यह सब कुछ होने के बाद गालव ने माधवी को वापिस लेकर उसे उसके पिता को लौटा किया."
शब्द कन्या का अर्थ भी वह अर्थ नहीं जो अब लगाया जाता है. वैदिक काल में कन्या का अर्थ था वह लड़की जो किसी भी पुरुष के साथ सम्भोग करने में स्वतन्त्र है. कुंती और मत्स्यगंधा के उदाहरण से यह स्पष्ट है. कुंती का पांडू के साथ विवाह होने से पूर्व उसके कई बच्चे पैदा हुए. मत्स्यगंधा ने भीष्म के पिता शांतनु के साथ विवाह करने से पूर्व मुनि पराशर से सम्भोग किया. आर्य बढ़िया संतान पैदा करवाने के लिए अपनी औरतों को देव नामक एक वर्ग को सौंपते थे. सप्तपदी की प्रथा का भी इसी रीति से आरम्भ हुआ. विवाह मंडप में जो वधू पवित्र अग्नि के इर्दगिर्द सात चक्कर काट देती थी, उसे देव से मुक्त करार दे दिया जाता था और ऐसा होने पर वर उसे ले जा सकता था.
आर्य पशुओं से भी सम्भोग करते थे. दाम ने हिरनी से और सूर्य ने घोड़ी से सम्भोग किया. अश्वमेध यज्ञ में औरत का मृत घोड़े से सम्भोग कराया जाता था."(देखें, महाराष्ट्र सरकार द्वारा प्रकाशित, डॉ.बाबासाहब आंबेडकर राइटिंग्स एंड स्पीचेज़ खंड ३ के पृष्ठ १५३-१५७) स्वामी दयानंद ने, यजुर्वेद भाष्य (पृष्ठ ७८८) में लिखा है: अश्विम्याँ छागेन सरस्वत्यै मेशेगेन्द्रय ऋषमें (यजुर्वेद २१/६०) अर्थात: प्राण और अपान के लिए दु:ख विनाश करने वाले छेरी आदि पशु से, वाणी के लिए मेढ़ा से, परम ऐश्वर्य के लिए बैल से-भोग करें. वेदों में दर्ज कुछ और नमूने अश्लील नमूने :-वेदों में दर्ज कुछ और नमूने अश्लील नमूने :-इन्द्राणी कहती है :- न सेशे .................उत्तर: (ऋगवेद १०.८६.१६)  अर्थ :- हे इन्द्र, वह मनुष्य सम्भोग करने में समर्थ नहीं हो सकता, जिसका पुरुषांग (लिंग) दोनों जंघाओं के बीच लम्बायमान है वही समर्थ हो सकता है, जिस के बैठने पर रोमयुक्त पुरुषांग बल का प्रकाश करता है अर्थात इन्द्र सब से श्रेष्ठ है. इस पर इन्द्र कहता है. न सेशे...........उत्तर. (ऋग्वेद १०-८६-१७)अर्थ :- वह मनुष्य सम्भोग करने में समर्थ नहीं हो सकता, जिसके बैठने पर रोम-युक्त पुरुषांग बल का प्रकाश करता है. वही समर्थ हो सकता है, जिसका पुरुषांग दोनों जंघाओं के बीच लंबायमान है। न मत्स्त्री.............................उत्तर:(ऋग्वेद १०-८६-६)अर्थ :- मुझ से बढ़कर कोई स्त्री सौभाग्यवती नहीं है. मुझ से बढ़कर कोई भी स्त्री पुरुष के पास शरीर को प्रफुल्लित नहीं कर सकती और न मेरे समान कोई दूसरी स्त्री सम्भोग के दौरान दोनों जाँघों को उठा सकती है. ताम.........................शेमम. (ऋग्वेद १०-८५-३७) अर्थ :- हे पूषा देवता, जिस नारी के गर्भ में पुरुष बीज बोता है, उसे तुम कल्याणी बनाकर भेजो, काम के वश में होकर वह अपनी दोनों जंघाओं को फैलाएगी और हम कामवश उसमें अपने लिंग से प्रहार करेंगे.
(वैधानिक चेतावनी :- आप सभी से प्रार्थना है की इस ब्लॉग में लिखे की घर में आजमाइश न करें तो अच्छा है वर्ना कुछ भी हो सकता है.इसे वेदों तक ही सिमित रहने दें फिर भी अगर कोई करता है उसका होस्लेवाला जिम्मेदार नहीं होगा. आजकल छोटी-छोटी बातों की वजह से नौबत तलाक तक पहुंच जाती है ये तो फिर बहुत ही बड़ी बात है.बाकी वेदों में दर्ज इस अश्लीलता के बारे में अवश्य लिखें लेकिन वेदों को पढ़ने के बाद। बिना पढ़े यह न कह दें कि ये सारी बातें मनगढ़ंत हैं।)

जब बहन ने भाई के सामने रखा इंडीसेंट प्रपोज़ल


ऋग्वेद में यम और यमी आपस में भाई-बहन के रूप में आते हैं।
प्रस्तुत है उनके बीच संवाद :
यमी: "हे यम ! हमारे प्रथम दिन को कौन जान रहा है, कौन देख रहा है? फिर पुरुष इस बात को दूसरे से कह सकेगा? दिन मित्र देवता का स्थान है, यह दोनों ही विशाल हैं. इसलिए मेरे अभिमत के प्रतिकूल मुझे क्लेश देने वाले तुम, अनेक कर्मों वाले मनुष्यों के सम्बन्ध में किस प्रकार कहते हो ?(७) मेरी इच्छा है कि पति को शरीर अर्पण करने वाली पत्नी के सामान यम को अपनी देह अर्पित करूँ और वे दोनों पहिये जैसे मार्ग में संलिष्ट होते है, उसी प्रकार मैं होऊं (८) (यजुर्वेद १-१७)
यम : (अपनी बहन से कहता है) : " हे यमी ! देवदूत बराबर विचरण करते रहते हैं, वे सदा सतर्क रहते है, इसलिए हे मेरी धर्ममति को नष्ट करने की इच्छा वाली, तू मुझे छोड़ कर अन्य किसी की पत्नी बन और शीघ्रता से जा कर उसके साथ रथ-चक्र के सामान संश्लिस्ट हो (९) संभवत: आगे चलकर ऐसे ही दिन रात्रि आयें जब बहन अपने अबंधुत्व को पाने लगेंगी पर अभी ऐसा नहीं होता, अत: यमी ! तू सेवन समर्थ अन्य पुरुष के लिए अपना हाथ बढ़ा और मुझे छोड़ कर उसे ही पति बनाने की कामना कर" (१) 
यमी : अपने भाई (यम) का यह उत्तर सुन कर भी चुप नहीं होती बल्कि वह एक बार फिर अपने भाई को ताना देते हुए कहती है : " वह बन्धु कैसा, जिसके विद्यमान रहते भगिनी इच्छित कामना से विमुक्त रह जाए, वह कैसी भगिनी जिसके समक्ष बंधु संतप्त हो ? इसलिए तुम मेरी इच्छनुसार आचरण करो" (२)
यम : फिर इनकार करते हुए कहता है : " हे यमी ! मैं तेरी कामना को पूर्ण करने वाला नहीं हो सकता और तेरी देह से स्पर्श नहीं कर सकता. अब तू मुझे छोड़ कर अन्य पुरुष से इस प्रकार का सम्बन्ध स्थापित कर. मैं तेरे भार्यात्व की कामना नहीं करता (१३) हे यमी ! मैं तेरे शरीर का स्पर्श नहीं कर सकता. धर्म के ज्ञाता, भाई-भगिनी के ऐसे सम्बन्ध को पाप कहते हैं. मैं ऐसा करूँ तो यह कर्म मेरे ह्रदय, मन और प्राण का भी नाश कर देगा" (१४)
यह सुन कर तो मानों यमी बिलकुल निराश ही हो गई दिखती है वह कहती है : " हे यम ! तेरी दुर्बलता पर मुझे दू:ख है. तेरा मन मुझ में नहीं है, मैं तेरे ह्रदय को नहीं समझ सकी. वह किसी अन्य स्त्री से सम्बंधित होगा" (५)
अंत में यम यह कह कर अपनी बहन से पीछा छुड़ाता है, " हे यमी ! रस्सी जैसे अश्व में युक्त होती है, वृत्ति  जैसे वृक्ष को जकड़ती है, वैसे तू अन्य पुरुष से मिल. तुम दोनों परस्पर अनुकूल मन वाले होवो और फिर तू अत्यंत कल्याण वाले सुख को प्राप्त हो."
नियोग :-
वेद में नियोग के आधार पर एक स्त्री को ग्यारह तक पति रखने और उन से दस संतान पैदा करने की छूट दी गई है. नियोग किन-किन हालतों में किया जाना चाहिए, इसके बारे में मनु ने  इस प्रकार कहा है : 
विवाहिता स्त्री का विवाहित पति यदि धर्म के अर्थ परदेश गया हो तो आठ वर्ष, विद्या और कीर्ति के लिए गया हो तो छ: और धनादि कामना के लिए गया हो तो तीन वर्ष तक बाट देखने के पश्चात् नियोग करके संत्तान उत्पत्ति कर ले. जब विवाहित पति आवे तब नियुक्त छूट जावे.(१) वैसे ही पुरुष के लिए भी नियम है कि पत्नी बंध्या हो तो आठवें (विवाह से आठ वर्ष तक स्त्री को गर्भ न रहे), संतान हो कर मर जावे तो दसवें, कन्याएं ही पैदा करने वाली को ग्यारहवें वर्ष और अप्रिय बोलने वाली को तत्काल छोड़ कर दूसरी स्त्री से नियोग करके संतान पैदा करे. (मनु ९-७-८१) 
अब नियोग के बारे में आदेश देखिये :
हे पति और देवर को दुःख न देने वाली स्त्री, तू इस गृह आश्रम में पशुओं के लिए शिव कल्याण करने हारी, अच्छे प्रकार धर्म नियम में चलने वाले रूप और सर्व शास्त्र विध्या युक्त उत्तम पुत्र-पौत्रादि से सहित शूरवीर पुत्रों को जनने देवर की कामना करने वाली और सुख देनेहारी पति व देवर को होके इस गृहस्थ-सम्बन्धी अग्निहोत्री को सेवन किया कर. (अथर्व वेद १४-२-१८)
कुह............सधसथ आ.(ऋग्वेद १०.१.४०). उदिश्वर............बभूथ (ऋग्वेद १०.१८.८)हे स्त्री पुरुषो ! जैसे देवर को विधवा और विवाहित स्त्री अपने पति को समान स्थान शय्या में एकत्र हो कर संतान को सब प्रकार से उत्पन्न करती है वैसे तुम दोनों स्त्री पुरुष कहाँ रात्रि और कहाँ दिन में बसे थे कहाँ पदार्थों की प्राप्ति की ? और किस समय कहाँ वास करते थे ? तुम्हारा शयनस्थान कहाँ है ? तथा कौन व किस देश के रहने वाले हो ?इससे यह सिद्ध होता है देश-विदेश में स्त्री पुरुष संग ही में रहे और विवाहित पति के समान नियुक्त पति को ग्रहण करके विधवा स्त्री भी संतान उत्पत्ति कर ले. सोम:.................मनुष्यज: (ऋग्वेद मं १०,सू.८५, मं ४०)अर्थात : हे स्त्री ! जो पहला विवाहित पति तुझको प्राप्त होता, उसका नाम सुकुमारादी गनयुक्त होने से सोम, जो दूसरा नियोग से प्राप्त होता वह एक स्त्री से सम्भोग करे से गन्धर्व, जो दो के पश्चात तीसरा पति होता है वह अत्युष्ण तायुक्त होने से अग्निसग्यक और जो तेरे चोथे से ले के ग्यारहवें तक नियोग से पति होते वे मनुष्य नाम से कहाते है. इमां.................................. कृधि ( ऋग्वेद मं.१०,सू.८५ मं.४५) अर्थात : हे वीर्य सिंचन में समर्थ ऐश्वर्य युक्त पुरुष. तू इस विवाहित स्त्री व विधवा स्त्रियों को श्रेष्ठ पुत्र और सौभाग्युक्त कर. इस विवाहित स्त्री में दश पुत्र उतन्न कर और ग्यारहवीं स्त्री को मान. हे स्त्री ! तू भी विवाहित पुरुष से दस संतान उत्पन्न कर और ग्यारहवें पति को समझ.घी लेप कर नियोग करो :- मनु ने नियोग करने वाले के लिए यह नियम भी बनाया : विधवायां..........कथ्चन. (९-६०) अर्थात :- नियोग करने वाले पुरुष को चाहिए की सारे शरीर में घी लेपकर, रात में मौन धारण कर विधवा में एक ही पुत्र करे, दूसरा कभी न करें.
नियोग में भी जाति-भेद : मनु ने इस सम्बन्ध में कहा है : द्विजों को चाहिए कि विधवा स्त्री का नियोग किसी अन्य जाति के पुरुष से न कराये. दूसरी जाति के पुरुष से नियोग कराने वाले उसके पतिव्रता स्वरूप को सनातन धर्म को नष्ट कर डालते है.
(हिंदुइजम धर्म या कलंक के सौजन्य से )

जेसिका हत्याकांड:मनु ने की पैरोल की मांग

मनु शर्मा उर्फ सिद्धार्थ शर्मा सन ऑफ विनोद शर्मा (भूतपूर्व सेन्ट्रल मिनस्टर हरयाणा) यही पहचान है इस शख्स की दिल्ली की तिहाड जेल में. शक्ल से मासूम दिखने वाला ये इंसान(खबर के लिए यहाँ क्लिक करें)
मोडल जेसिका लाल का हत्यारा है जो आज तिहाड जेल में अपने सगे भाई की शादी में जाने के लिए फडफडा रहा है कानून ने इसको इसकी करतूत की एवज में तिहाड़ की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया था और अब भी तिहाड जेल न.- २ में है क्योंकि ये शख्स मेरे ही वार्ड में था आज इसको अचानक पैरोल की जरुरत आन पडी है. मनु शर्मा आज भी जेल में आवारागर्दी से बाज नहीं आ रहा है जिसका खामियाजा इसे जेल से छूटते वक्त उठाना पडेगा. मुझे इस शख्स के बारे में ज्यादा बताने की जरुरत नहीं है क्योंकि इस हत्याकांड पर " नो वन किल्ल्ड जेसिका" नाम की मूवी बन चुकी है. मनु अपने भाई की शादी में शिरकत करना चाहता है इसलिए इसने हाई कोर्ट से पैरोल देने की गुहार लगाईं है मगर मेरी समझ में ये नहीं आया आखिर क्या सोचकर कानून इसे पैरोल देगा, क्या यही सोचकर की पिछली बार जब मनु पैरोल पर गया था तो इस शख्स ने अशोका होटल के रेस्टोरेंट में हंगामा खडा कर दिया था रात-रात भर अवरागार्दीयाँ की इस शख्स ने पैरोल पर जाकर. मैं मानता हूँ कि ये उसका निजी मामला है मगर इसका मतलब ये नहीं की पैरोल मिलने के बाद आप समाज में जाकर आम नागरिक का जीना दूभर कर दो जो इसने पिछली पैरोल के दौरान किया था खासकर उस शख्स के लिए शोभा नहीं देता जो कि हाई प्रोफाइल केस में सजा काट रहा हो. जेल से जल्दी छुटकारा पाने के लिए उम्र-कैदी को तो जेल में ऐसे रहना पड़ता है जैसे कि एक सभ्य महिला प्रग्नैन्सी के दौरान रहती है अगर ऐसा न करो तो पन्द्रह के बीस साल भी काटने पड़ सकते है जेल में और मैंने जेल में बीस-बीस साल तक काटते एक कैदी को नहीं कईयों को देखा है, साथ में रोते हुए भी और जिनका पास्ट, कैदी का हमेशा पीछा करता रहता है मनु के विषय में भी यही बात एकदम फिट बैठती है इसकी बैक ग्राऊंड को देखते हुए कोर्ट का पैरोल देने का सवाल ही नहीं उठता है अगर मान लो पैरोल मिल भी गई तो कस्टडी पैरोल मिलेगी वो भी सिर्फ चार-छ; घंटे के लिए इससे ज्यादा नहीं,पुलिस कस्टडी में ही शादी में जाओ और रात में खाना खाओ और वापिस पुलिस कस्टडी में जेल आ जाओ. भाइयों मैं वकील तो नहीं हूँ मगर इस बात का मुझे पूरा-पूरा अनुभव है और ये भी बता दूं हो सकता है पैरोल रिजेक्ट भी हो जाए और मनु जेल में ही अपने भाई की शादी के लड्डू खाए और साथ में कैदियों के भी पों बारह हो जाए. मनु शर्मा अरबपति है तो क्या हुआ कानून के शिकंजे में आने के बाद भी पैसा धरा का धरा रह जाता है वो आप देख भी रहे हो लगभग सात या आठ साल तो इसे हो भी गए है जेल में एडियाँ रगड़ते हुए अंत में यही कहूँगा " पिंजरा तो पिंजरा होता है भले ही सोने का 
क्यूँ ना हो, आजादी हर कैदी का ख़्वाब होती है कालिया, इस बार तुम्हारे रोम-रोम की एक-एक बूँद चीखेगी और कहेगी की मनु तुमने ये ख़्वाब देखा तो क्यों देखा, इसको सर से पाँव तक इतना लोहा पहना दो कि ये फिर कभी आजादी के लिए सर ना उठा सके " कहो कैसी कही..........? मेरा इस बारे में ब्लॉग लिखने का इतना सा मकसद है कि पैसे वालों को अगर इस तरह का गरूर है तो माफ करना संभल जाएँ और सोच समझकर ही क़त्ल जैसी घटना को अंजाम दें क्योंकि क़त्ल जैसी घटना आम आदमी के घर के भांडे तक बिकवा देता है दिल्ली जैसे शहर में. 

शुक्रवार, 4 नवंबर 2011

भगवान नायक या खलनायक?-भाग 2


"हिन्दूइजम धर्म या कलंक" के सौजन्य से एस आर बाली द्वारा लिखित
 १.अहिल्या से संगम करने वाला - इन्द्र            
गोस्वामी तुलसीदास ने इन्द्र के बारे में लिखा है की- 'काक सामान पाप रिपु रितिऔ  छली मलीन कतहूँ न प्रतितो' अर्थात इन्द्र का तौर तरीका काले कौए का सा है, वह छली है | उसका ह्रदय मलीन है तथा किसी पर वह विश्वास नहीं करता | वह अश्वमेघ के घोड़ो को चुराया करता था | इन्द्र ने गौतम की धर्म पत्नी अहिल्या का सतीत्व अपहरण किया था | कहानी इस प्रकार है--- सच्पति इन्द्र ने आश्रम से मुनि की अनुपस्तिथि जानकार और मुनि का वेश धारण कर अहिल्या से कहा |१७| हे अति सुंदरी ! कामिजन भोग-विलास के लिए रीतिकाल की प्रतीक्षा नहीं करते, अर्थात इस बात का इंतजार नहीं करते की जब स्त्री मासिक धर्म से निवृत हो जाए तभी उनके सात समागम करना चाहिए | अत:हे सुन्दर कमर वाली ! मैं तुम्हारे साथ प्रसंग करना चाहता हूँ. |१८|| विस्वमित्र कहते है की हे रामचंदर वह ! वह मुर्ख मुनिवेश्धारी इन्द्र को पहचान कर भी इस विचार से की देखूं देवराज के साथ रति करने से कैसा दिव्य आनंद प्राप्त होता है, इस पाप कर्म के करने में सहमत हो गई ||१९ || तदनन्तर वह कृतार्थ  ह्रदय से देवताओं में श्रेष्ठ इन्द्र से बोली की हे सुरोत्तम ! मैं कृतार्थ ह्रदय अर्थात देवी-रति का आनंदोपभोग करने से मुझे अपनी तपस्या का फल मिल गया. अब, हे प्रेमी ! आप यहाँ से शीघ्र चले जाइए ||२० || हे देवराज, आप गौतम से अपनी और मेरी रक्षा सब प्रकार से करें | इन्द्र ने हंसकर अहिल्या से वाच कहा ||21 || हे सुन्दर नितम्बों वाली ! मैं पूर्ण संतुष्ट हूँ | अब जहाँ से आया हूँ, वहां चला जाऊंगा| इस प्रकार अहिल्या के साथ संगम कर वह कुटिया से निकल गया ||२२||
2.वृंदा का सतीत्व लूटने वाला-विष्णु
विष्णु ने अपनी करतूतों का सर्वश्रेठ नमूना उस समय दिखलाया जब वे असुरेंदर जालंधर की स्त्री वृंदा का सतीत्व अपहरण करने में तनिक भी नहीं हिचके | उसको वरदान था की जब तक उसकी स्त्री का सतीत्व कायम रहेगा, तब तक उसे कोई भी मार नहीं सकेगा  पर वह इतना अत्याचारी निकला की उसके वध के लिए विष्णु को परस्त्रीगमन जैसे घृणित उपाय का आश्रय लेना पड़ा.रूद्र-संहिता युद्ध खंड,अध्याय २४ में लिखा है----विष्णु...................पुत्भेद्नाम |अर्थात :विष्णु ने जालंधर दैत्य की राजधानी जाकर उसकी स्त्री वृंदा का सतिवृत्य (पतिवृतय) नष्ट करने का विचार किया |इधर शिव जालंधर के साथ युद्ध कर रहा था और उधर विष्णु महाराज ने जालंधर का वेश धारण कर उसकी स्त्री वृंदा का सतीत्व नष्ट कर दिया, जिससे वह दैत्य मारा गया. जब वृंदा को विष्णु का यह छल मालूम हुआ तो उसने विष्णु से कहा---धिक्...............तापस: | अर्थात हे विष्णु ! परे स्त्री के साथ व्यभिचार करने वाले,तुम्हारे ऐसे आचरण पर धिक्कार है | अब तुम को मैं भलीभांति जान गई | तुम देखने में तो महासाधु जान पड़ते हो, पर हो तुम मायावी, अर्थात महा छली  |
3.मोहिनी के पीछे दौड़ाने वाला कामी-शिव शंकर 
भगवन(?) शंकर ने दौड़ कर क्रीडा करती हुई मोहिनी को जबरदस्ती पकड़ लिया और अपने ह्रदय से लगा लिया | इसके बाद क्या हुआ ? महादेव शिव शंकर की तत्कालीन दयनीय अवस्था का चित्र देखना हो तो श्रीमद्भागवत, स्कन्द ८, अध्याय १२, देखने का कष्ट करें जिसमें लिखा है---आत्मानम...........देव्विनिम्म्र्ता ||३०|| तस्यासौ........ निनिर्जित:||३१|| तस्यानुधावती..........धावत: ||३२|| अर्थात : हे महाराजा ! तदन्तर देवों में श्रेठ शंकर के दोनों बाहुओं के बीच से अपने को छुड़ाकर वह नारायणनिर्मिता विपुक्ष नितम्बिनी माया (मोहिनी) भाग चली ||३१|| पीछा करते-करे ऋतुमती हथिनी के अनुगामी हाथी की तरह अमोधविर्य महादेव का वीर्य स्खलित होने लगा ||31||
४.अपनी बेटी से बलात्कार करने वाला, जगत रचयिता : ब्रह्मा 
'ब्रह्मा'शब्द के विविध अर्थ देते हुए श्री आप्र्टे के संस्कृत-अंग्रेजी कोष में यह लिखा है- पुराणानुसार ब्रह्मा की उत्पति विष्णु की नाभि से निकले कमल से हुई बताई गई है उन्होंने अपनी ही पुत्री सरस्वती के साथ अनुचित सम्भोग कर इस जगत की रचना की पहले ब्रह्मा के पांच सर थे,किन्तु शिव ने उनमें से एक को अपनी अनामिका से काट  डाला व अपनी तीसरी आँख से निकली हुई ज्वाला से जला दिया. श्रीमद भगवत, तृतीय स्कंध, अध्याय १२ में लिखा है---वाचं.................प्रत्याबोध्नायं ||२९|| अर्थात : मैत्रेय कहते है की हे क्षता(विदुर)!हम लोगों ने सुना है की ब्रह्मा ने अपनी कामरहित मनोहर कन्या सरस्वती की कामना कामोन्मत होकर की ||२८|| पिता की अधर्म  बुद्धि को देखकर मरिच्यादी मुनियों ने उन्हें नियमपूर्वक समझाया ||२९||क्या यह पतन की सीमा नहीं है.? इससे भी ज्यादा लज्जाजनक क्या कुछ और हो सकता है.?
५.गर्भवती ममता से भोग करने वाला गुरु :
 ब्रहस्पति गुरु का अर्थ है (गृ * कु, धे ) अर्थात जो धरम का उपदेश देता है वह गुरु है. ब्रहस्पति इन्द्र आणि देवताओं का गुरु माना  जाता है इन्ही की रची हुई एक स्मृति भी है जो ब्रहस्पति स्मृति के नाम से प्रसिद्द है ये अपने बड़े भाई उत्थाय की गरभवती स्त्री ममता के लाख मना करने भी पर कामोंम्त्त होकर उस पर चढ़ बैठा . श्री मद भगवत, स्कंध-१ अध्याय २०, में एस सम्बन्ध में एस प्रकार लिखा है-      तस्यैव .............वित्थेंयाये.(३५ से ३९)      अर्थात : स्व्वंश ने एस प्रकार नष्ट हो जाने परराजा भारत ने मरुत्सोम नामक यग्य का अनुष्ठान किया उस यग्य में मरुत देवों ने राजा को भारद्वाजनामक पुत्र दिया ||३५|| एक समय ब्रहस्पति कामातुर होकर अपने भाई की गर्भवती स्त्री के साथ मना किये जाने पर भी, मैथुन करने में प्रवृत्त हुए और गर्भ को शाप देकर अपना वीर्य छोड़ दिया ||३६||.............आगे जानने के लिए अगला एपिसोड अवश्य पढ़ें अपनी राय देना ना भूले.....................? धन्यवाद 

भगवान नायक या खलनायक?-भाग 2


"हिन्दूइजम धर्म या कलंक" के सौजन्य से एस आर बाली द्वारा लिखित
 १.अहिल्या से संगम करने वाला - इन्द्र            
गोस्वामी तुलसीदास ने इन्द्र के बारे में लिखा है की- 'काक सामान पाप रिपु रितिऔ  छली मलीन कतहूँ न प्रतितो' अर्थात इन्द्र का तौर तरीका काले कौए का सा है, वह छली है | उसका ह्रदय मलीन है तथा किसी पर वह विश्वास नहीं करता | वह अश्वमेघ के घोड़ो को चुराया करता था | इन्द्र ने गौतम की धर्म पत्नी अहिल्या का सतीत्व अपहरण किया था | कहानी इस प्रकार है--- सच्पति इन्द्र ने आश्रम से मुनि की अनुपस्तिथि जानकार और मुनि का वेश धारण कर अहिल्या से कहा |१७| हे अति सुंदरी ! कामिजन भोग-विलास के लिए रीतिकाल की प्रतीक्षा नहीं करते, अर्थात इस बात का इंतजार नहीं करते की जब स्त्री मासिक धर्म से निवृत हो जाए तभी उनके सात समागम करना चाहिए | अत:हे सुन्दर कमर वाली ! मैं तुम्हारे साथ प्रसंग करना चाहता हूँ. |१८|| विस्वमित्र कहते है की हे रामचंदर वह ! वह मुर्ख मुनिवेश्धारी इन्द्र को पहचान कर भी इस विचार से की देखूं देवराज के साथ रति करने से कैसा दिव्य आनंद प्राप्त होता है, इस पाप कर्म के करने में सहमत हो गई ||१९ || तदनन्तर वह कृतार्थ  ह्रदय से देवताओं में श्रेष्ठ इन्द्र से बोली की हे सुरोत्तम ! मैं कृतार्थ ह्रदय अर्थात देवी-रति का आनंदोपभोग करने से मुझे अपनी तपस्या का फल मिल गया. अब, हे प्रेमी ! आप यहाँ से शीघ्र चले जाइए ||२० || हे देवराज, आप गौतम से अपनी और मेरी रक्षा सब प्रकार से करें | इन्द्र ने हंसकर अहिल्या से वाच कहा ||21 || हे सुन्दर नितम्बों वाली ! मैं पूर्ण संतुष्ट हूँ | अब जहाँ से आया हूँ, वहां चला जाऊंगा| इस प्रकार अहिल्या के साथ संगम कर वह कुटिया से निकल गया ||२२||
2.वृंदा का सतीत्व लूटने वाला-विष्णु
विष्णु ने अपनी करतूतों का सर्वश्रेठ नमूना उस समय दिखलाया जब वे असुरेंदर जालंधर की स्त्री वृंदा का सतीत्व अपहरण करने में तनिक भी नहीं हिचके | उसको वरदान था की जब तक उसकी स्त्री का सतीत्व कायम रहेगा, तब तक उसे कोई भी मार नहीं सकेगा  पर वह इतना अत्याचारी निकला की उसके वध के लिए विष्णु को परस्त्रीगमन जैसे घृणित उपाय का आश्रय लेना पड़ा.रूद्र-संहिता युद्ध खंड,अध्याय २४ में लिखा है----विष्णु...................पुत्भेद्नाम |अर्थात :विष्णु ने जालंधर दैत्य की राजधानी जाकर उसकी स्त्री वृंदा का सतिवृत्य (पतिवृतय) नष्ट करने का विचार किया |इधर शिव जालंधर के साथ युद्ध कर रहा था और उधर विष्णु महाराज ने जालंधर का वेश धारण कर उसकी स्त्री वृंदा का सतीत्व नष्ट कर दिया, जिससे वह दैत्य मारा गया. जब वृंदा को विष्णु का यह छल मालूम हुआ तो उसने विष्णु से कहा---धिक्...............तापस: | अर्थात हे विष्णु ! परे स्त्री के साथ व्यभिचार करने वाले,तुम्हारे ऐसे आचरण पर धिक्कार है | अब तुम को मैं भलीभांति जान गई | तुम देखने में तो महासाधु जान पड़ते हो, पर हो तुम मायावी, अर्थात महा छली  |
3.मोहिनी के पीछे दौड़ाने वाला कामी-शिव शंकर 
भगवन(?) शंकर ने दौड़ कर क्रीडा करती हुई मोहिनी को जबरदस्ती पकड़ लिया और अपने ह्रदय से लगा लिया | इसके बाद क्या हुआ ? महादेव शिव शंकर की तत्कालीन दयनीय अवस्था का चित्र देखना हो तो श्रीमद्भागवत, स्कन्द ८, अध्याय १२, देखने का कष्ट करें जिसमें लिखा है---आत्मानम...........देव्विनिम्म्र्ता ||३०|| तस्यासौ........ निनिर्जित:||३१|| तस्यानुधावती..........धावत: ||३२|| अर्थात : हे महाराजा ! तदन्तर देवों में श्रेठ शंकर के दोनों बाहुओं के बीच से अपने को छुड़ाकर वह नारायणनिर्मिता विपुक्ष नितम्बिनी माया (मोहिनी) भाग चली ||३१|| पीछा करते-करे ऋतुमती हथिनी के अनुगामी हाथी की तरह अमोधविर्य महादेव का वीर्य स्खलित होने लगा ||31||
४.अपनी बेटी से बलात्कार करने वाला, जगत रचयिता : ब्रह्मा 
'ब्रह्मा'शब्द के विविध अर्थ देते हुए श्री आप्र्टे के संस्कृत-अंग्रेजी कोष में यह लिखा है- पुराणानुसार ब्रह्मा की उत्पति विष्णु की नाभि से निकले कमल से हुई बताई गई है उन्होंने अपनी ही पुत्री सरस्वती के साथ अनुचित सम्भोग कर इस जगत की रचना की पहले ब्रह्मा के पांच सर थे,किन्तु शिव ने उनमें से एक को अपनी अनामिका से काट  डाला व अपनी तीसरी आँख से निकली हुई ज्वाला से जला दिया. श्रीमद भगवत, तृतीय स्कंध, अध्याय १२ में लिखा है---वाचं.................प्रत्याबोध्नायं ||२९|| अर्थात : मैत्रेय कहते है की हे क्षता(विदुर)!हम लोगों ने सुना है की ब्रह्मा ने अपनी कामरहित मनोहर कन्या सरस्वती की कामना कामोन्मत होकर की ||२८|| पिता की अधर्म  बुद्धि को देखकर मरिच्यादी मुनियों ने उन्हें नियमपूर्वक समझाया ||२९||क्या यह पतन की सीमा नहीं है.? इससे भी ज्यादा लज्जाजनक क्या कुछ और हो सकता है.?
५.गर्भवती ममता से भोग करने वाला गुरु :
 ब्रहस्पति गुरु का अर्थ है (गृ * कु, धे ) अर्थात जो धरम का उपदेश देता है वह गुरु है. ब्रहस्पति इन्द्र आणि देवताओं का गुरु माना  जाता है इन्ही की रची हुई एक स्मृति भी है जो ब्रहस्पति स्मृति के नाम से प्रसिद्द है ये अपने बड़े भाई उत्थाय की गरभवती स्त्री ममता के लाख मना करने भी पर कामोंम्त्त होकर उस पर चढ़ बैठा . श्री मद भगवत, स्कंध-१ अध्याय २०, में एस सम्बन्ध में एस प्रकार लिखा है-      तस्यैव .............वित्थेंयाये.(३५ से ३९)      अर्थात : स्व्वंश ने एस प्रकार नष्ट हो जाने परराजा भारत ने मरुत्सोम नामक यग्य का अनुष्ठान किया उस यग्य में मरुत देवों ने राजा को भारद्वाजनामक पुत्र दिया ||३५|| एक समय ब्रहस्पति कामातुर होकर अपने भाई की गर्भवती स्त्री के साथ मना किये जाने पर भी, मैथुन करने में प्रवृत्त हुए और गर्भ को शाप देकर अपना वीर्य छोड़ दिया ||३६||.............आगे जानने के लिए अगला एपिसोड अवश्य पढ़ें अपनी राय देना ना भूले.....................? धन्यवाद