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गुरुवार, 10 नवंबर 2011

जेसिका हत्याकांड:मनु ने की पैरोल की मांग

मनु शर्मा उर्फ सिद्धार्थ शर्मा सन ऑफ विनोद शर्मा (भूतपूर्व सेन्ट्रल मिनस्टर हरयाणा) यही पहचान है इस शख्स की दिल्ली की तिहाड जेल में. शक्ल से मासूम दिखने वाला ये इंसान(खबर के लिए यहाँ क्लिक करें)
मोडल जेसिका लाल का हत्यारा है जो आज तिहाड जेल में अपने सगे भाई की शादी में जाने के लिए फडफडा रहा है कानून ने इसको इसकी करतूत की एवज में तिहाड़ की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया था और अब भी तिहाड जेल न.- २ में है क्योंकि ये शख्स मेरे ही वार्ड में था आज इसको अचानक पैरोल की जरुरत आन पडी है. मनु शर्मा आज भी जेल में आवारागर्दी से बाज नहीं आ रहा है जिसका खामियाजा इसे जेल से छूटते वक्त उठाना पडेगा. मुझे इस शख्स के बारे में ज्यादा बताने की जरुरत नहीं है क्योंकि इस हत्याकांड पर " नो वन किल्ल्ड जेसिका" नाम की मूवी बन चुकी है. मनु अपने भाई की शादी में शिरकत करना चाहता है इसलिए इसने हाई कोर्ट से पैरोल देने की गुहार लगाईं है मगर मेरी समझ में ये नहीं आया आखिर क्या सोचकर कानून इसे पैरोल देगा, क्या यही सोचकर की पिछली बार जब मनु पैरोल पर गया था तो इस शख्स ने अशोका होटल के रेस्टोरेंट में हंगामा खडा कर दिया था रात-रात भर अवरागार्दीयाँ की इस शख्स ने पैरोल पर जाकर. मैं मानता हूँ कि ये उसका निजी मामला है मगर इसका मतलब ये नहीं की पैरोल मिलने के बाद आप समाज में जाकर आम नागरिक का जीना दूभर कर दो जो इसने पिछली पैरोल के दौरान किया था खासकर उस शख्स के लिए शोभा नहीं देता जो कि हाई प्रोफाइल केस में सजा काट रहा हो. जेल से जल्दी छुटकारा पाने के लिए उम्र-कैदी को तो जेल में ऐसे रहना पड़ता है जैसे कि एक सभ्य महिला प्रग्नैन्सी के दौरान रहती है अगर ऐसा न करो तो पन्द्रह के बीस साल भी काटने पड़ सकते है जेल में और मैंने जेल में बीस-बीस साल तक काटते एक कैदी को नहीं कईयों को देखा है, साथ में रोते हुए भी और जिनका पास्ट, कैदी का हमेशा पीछा करता रहता है मनु के विषय में भी यही बात एकदम फिट बैठती है इसकी बैक ग्राऊंड को देखते हुए कोर्ट का पैरोल देने का सवाल ही नहीं उठता है अगर मान लो पैरोल मिल भी गई तो कस्टडी पैरोल मिलेगी वो भी सिर्फ चार-छ; घंटे के लिए इससे ज्यादा नहीं,पुलिस कस्टडी में ही शादी में जाओ और रात में खाना खाओ और वापिस पुलिस कस्टडी में जेल आ जाओ. भाइयों मैं वकील तो नहीं हूँ मगर इस बात का मुझे पूरा-पूरा अनुभव है और ये भी बता दूं हो सकता है पैरोल रिजेक्ट भी हो जाए और मनु जेल में ही अपने भाई की शादी के लड्डू खाए और साथ में कैदियों के भी पों बारह हो जाए. मनु शर्मा अरबपति है तो क्या हुआ कानून के शिकंजे में आने के बाद भी पैसा धरा का धरा रह जाता है वो आप देख भी रहे हो लगभग सात या आठ साल तो इसे हो भी गए है जेल में एडियाँ रगड़ते हुए अंत में यही कहूँगा " पिंजरा तो पिंजरा होता है भले ही सोने का 
क्यूँ ना हो, आजादी हर कैदी का ख़्वाब होती है कालिया, इस बार तुम्हारे रोम-रोम की एक-एक बूँद चीखेगी और कहेगी की मनु तुमने ये ख़्वाब देखा तो क्यों देखा, इसको सर से पाँव तक इतना लोहा पहना दो कि ये फिर कभी आजादी के लिए सर ना उठा सके " कहो कैसी कही..........? मेरा इस बारे में ब्लॉग लिखने का इतना सा मकसद है कि पैसे वालों को अगर इस तरह का गरूर है तो माफ करना संभल जाएँ और सोच समझकर ही क़त्ल जैसी घटना को अंजाम दें क्योंकि क़त्ल जैसी घटना आम आदमी के घर के भांडे तक बिकवा देता है दिल्ली जैसे शहर में. 

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