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शुक्रवार, 4 नवंबर 2011

भगवान नायक या खलनायक?-भाग 2


"हिन्दूइजम धर्म या कलंक" के सौजन्य से एस आर बाली द्वारा लिखित
 १.अहिल्या से संगम करने वाला - इन्द्र            
गोस्वामी तुलसीदास ने इन्द्र के बारे में लिखा है की- 'काक सामान पाप रिपु रितिऔ  छली मलीन कतहूँ न प्रतितो' अर्थात इन्द्र का तौर तरीका काले कौए का सा है, वह छली है | उसका ह्रदय मलीन है तथा किसी पर वह विश्वास नहीं करता | वह अश्वमेघ के घोड़ो को चुराया करता था | इन्द्र ने गौतम की धर्म पत्नी अहिल्या का सतीत्व अपहरण किया था | कहानी इस प्रकार है--- सच्पति इन्द्र ने आश्रम से मुनि की अनुपस्तिथि जानकार और मुनि का वेश धारण कर अहिल्या से कहा |१७| हे अति सुंदरी ! कामिजन भोग-विलास के लिए रीतिकाल की प्रतीक्षा नहीं करते, अर्थात इस बात का इंतजार नहीं करते की जब स्त्री मासिक धर्म से निवृत हो जाए तभी उनके सात समागम करना चाहिए | अत:हे सुन्दर कमर वाली ! मैं तुम्हारे साथ प्रसंग करना चाहता हूँ. |१८|| विस्वमित्र कहते है की हे रामचंदर वह ! वह मुर्ख मुनिवेश्धारी इन्द्र को पहचान कर भी इस विचार से की देखूं देवराज के साथ रति करने से कैसा दिव्य आनंद प्राप्त होता है, इस पाप कर्म के करने में सहमत हो गई ||१९ || तदनन्तर वह कृतार्थ  ह्रदय से देवताओं में श्रेष्ठ इन्द्र से बोली की हे सुरोत्तम ! मैं कृतार्थ ह्रदय अर्थात देवी-रति का आनंदोपभोग करने से मुझे अपनी तपस्या का फल मिल गया. अब, हे प्रेमी ! आप यहाँ से शीघ्र चले जाइए ||२० || हे देवराज, आप गौतम से अपनी और मेरी रक्षा सब प्रकार से करें | इन्द्र ने हंसकर अहिल्या से वाच कहा ||21 || हे सुन्दर नितम्बों वाली ! मैं पूर्ण संतुष्ट हूँ | अब जहाँ से आया हूँ, वहां चला जाऊंगा| इस प्रकार अहिल्या के साथ संगम कर वह कुटिया से निकल गया ||२२||
2.वृंदा का सतीत्व लूटने वाला-विष्णु
विष्णु ने अपनी करतूतों का सर्वश्रेठ नमूना उस समय दिखलाया जब वे असुरेंदर जालंधर की स्त्री वृंदा का सतीत्व अपहरण करने में तनिक भी नहीं हिचके | उसको वरदान था की जब तक उसकी स्त्री का सतीत्व कायम रहेगा, तब तक उसे कोई भी मार नहीं सकेगा  पर वह इतना अत्याचारी निकला की उसके वध के लिए विष्णु को परस्त्रीगमन जैसे घृणित उपाय का आश्रय लेना पड़ा.रूद्र-संहिता युद्ध खंड,अध्याय २४ में लिखा है----विष्णु...................पुत्भेद्नाम |अर्थात :विष्णु ने जालंधर दैत्य की राजधानी जाकर उसकी स्त्री वृंदा का सतिवृत्य (पतिवृतय) नष्ट करने का विचार किया |इधर शिव जालंधर के साथ युद्ध कर रहा था और उधर विष्णु महाराज ने जालंधर का वेश धारण कर उसकी स्त्री वृंदा का सतीत्व नष्ट कर दिया, जिससे वह दैत्य मारा गया. जब वृंदा को विष्णु का यह छल मालूम हुआ तो उसने विष्णु से कहा---धिक्...............तापस: | अर्थात हे विष्णु ! परे स्त्री के साथ व्यभिचार करने वाले,तुम्हारे ऐसे आचरण पर धिक्कार है | अब तुम को मैं भलीभांति जान गई | तुम देखने में तो महासाधु जान पड़ते हो, पर हो तुम मायावी, अर्थात महा छली  |
3.मोहिनी के पीछे दौड़ाने वाला कामी-शिव शंकर 
भगवन(?) शंकर ने दौड़ कर क्रीडा करती हुई मोहिनी को जबरदस्ती पकड़ लिया और अपने ह्रदय से लगा लिया | इसके बाद क्या हुआ ? महादेव शिव शंकर की तत्कालीन दयनीय अवस्था का चित्र देखना हो तो श्रीमद्भागवत, स्कन्द ८, अध्याय १२, देखने का कष्ट करें जिसमें लिखा है---आत्मानम...........देव्विनिम्म्र्ता ||३०|| तस्यासौ........ निनिर्जित:||३१|| तस्यानुधावती..........धावत: ||३२|| अर्थात : हे महाराजा ! तदन्तर देवों में श्रेठ शंकर के दोनों बाहुओं के बीच से अपने को छुड़ाकर वह नारायणनिर्मिता विपुक्ष नितम्बिनी माया (मोहिनी) भाग चली ||३१|| पीछा करते-करे ऋतुमती हथिनी के अनुगामी हाथी की तरह अमोधविर्य महादेव का वीर्य स्खलित होने लगा ||31||
४.अपनी बेटी से बलात्कार करने वाला, जगत रचयिता : ब्रह्मा 
'ब्रह्मा'शब्द के विविध अर्थ देते हुए श्री आप्र्टे के संस्कृत-अंग्रेजी कोष में यह लिखा है- पुराणानुसार ब्रह्मा की उत्पति विष्णु की नाभि से निकले कमल से हुई बताई गई है उन्होंने अपनी ही पुत्री सरस्वती के साथ अनुचित सम्भोग कर इस जगत की रचना की पहले ब्रह्मा के पांच सर थे,किन्तु शिव ने उनमें से एक को अपनी अनामिका से काट  डाला व अपनी तीसरी आँख से निकली हुई ज्वाला से जला दिया. श्रीमद भगवत, तृतीय स्कंध, अध्याय १२ में लिखा है---वाचं.................प्रत्याबोध्नायं ||२९|| अर्थात : मैत्रेय कहते है की हे क्षता(विदुर)!हम लोगों ने सुना है की ब्रह्मा ने अपनी कामरहित मनोहर कन्या सरस्वती की कामना कामोन्मत होकर की ||२८|| पिता की अधर्म  बुद्धि को देखकर मरिच्यादी मुनियों ने उन्हें नियमपूर्वक समझाया ||२९||क्या यह पतन की सीमा नहीं है.? इससे भी ज्यादा लज्जाजनक क्या कुछ और हो सकता है.?
५.गर्भवती ममता से भोग करने वाला गुरु :
 ब्रहस्पति गुरु का अर्थ है (गृ * कु, धे ) अर्थात जो धरम का उपदेश देता है वह गुरु है. ब्रहस्पति इन्द्र आणि देवताओं का गुरु माना  जाता है इन्ही की रची हुई एक स्मृति भी है जो ब्रहस्पति स्मृति के नाम से प्रसिद्द है ये अपने बड़े भाई उत्थाय की गरभवती स्त्री ममता के लाख मना करने भी पर कामोंम्त्त होकर उस पर चढ़ बैठा . श्री मद भगवत, स्कंध-१ अध्याय २०, में एस सम्बन्ध में एस प्रकार लिखा है-      तस्यैव .............वित्थेंयाये.(३५ से ३९)      अर्थात : स्व्वंश ने एस प्रकार नष्ट हो जाने परराजा भारत ने मरुत्सोम नामक यग्य का अनुष्ठान किया उस यग्य में मरुत देवों ने राजा को भारद्वाजनामक पुत्र दिया ||३५|| एक समय ब्रहस्पति कामातुर होकर अपने भाई की गर्भवती स्त्री के साथ मना किये जाने पर भी, मैथुन करने में प्रवृत्त हुए और गर्भ को शाप देकर अपना वीर्य छोड़ दिया ||३६||.............आगे जानने के लिए अगला एपिसोड अवश्य पढ़ें अपनी राय देना ना भूले.....................? धन्यवाद 

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