जी ये मुद्दा उठाया गया है कौशिकेश्वर ज्योतिलिर्न्गम रावण मंदिर व अनुसन्धान समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने रावण के पुतला जलाने पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का मन बनाया है. उनका कहना है की किसी भी धार्मिक किताब में रावण के अंतिम संस्कार का जिक्र नहीं है और तो और किसी के द्वारा भी रचित रामायण में अंतिम संस्कार का लेखा-जोखा नहीं है इसके लिए उन्होंने श्रीलंका से रावण की आटोबायोग्राफी की कोपी भी मंगवाई है. समिति के अध्यक्ष अनिल कौशिक का तो यहाँ तक कहना है रावण के मरणोपरांत उसके शव की ममी बनाकर सुरक्षित रख लिया गया है अनिल साहब का कहना भी जायज है जब आज के समय में भ्रष्ट नेताओं का पुतला जलाने पर पुलिस अर्रेस्ट कर लेती है तो ऐसे में रावण का पुतला दहन किस हालातों के तहत किया जाता है ये तो एक प्रकार से टोटल मनमानी हुई इनका मानना है की मंच प्रस्तुति तक तो सब सही है मगर रावण का दहन न्यायोचित नहीं है उनका तो यहाँ तक दावा है की ये बायोग्राफी रावण के द्वारा ही लिखी गई थी यह रावण के वंशज जय्लीला मेध्यनाथ के पास मौजूद है और तो और श्रीलंका में जय्लीला कृगीला की पहाड़ी पर रावण का एक विशाल मंदिर भी बना रहे है जो की विसरख में स्थित है इसमें कोई शक नहीं की रामायण के अनुसार रावण एक काबिल इंसान था राम लीला में तथ्यों को तोड़मरोड़ कर दिखाया जाता रहा है इस पर वेदों और ग्रंथों से तथ्य भी जुटाए जा रहे है बाल्मीकि रामायण में भी हनुमान जी द्वारा रावण का चित्रण एक हैंडसम स्मार्ट पुरुष के रूप में किया है. अनिल कौशिक जी की वजह से अब तो मुझे भी शक होने लगा है की कहीं ऐसा तो नहीं रावण सीता को उठाकर नहीं ले गया होगा बल्कि वह खुद ही अपनी मर्जी से रावण के साथ गई होगी आख़िरकार वो राम से समार्ट और ग्यानी ध्यानी था ये तमाम बातें मेरे शक को और पुख्ता करते है खैर जो अब तो समय ही बताएगा की क्या सच है और क्या झूठ है. अनिल कौशिक के अनुसार आते नवंम्बर में इस प्रकरण के खिलाफ एक जनहित याचिका दायर कर दी जायेगी.
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रविवार, 30 अक्तूबर 2011
९५ साल की बुढ़िया को उम्र कैद। अच्छा है!
अभी तीन दिन पहले एनबीटी में खबर पढ़ी कि ९५ साल कि बुढ़िया को उम्र कैद हो गई है ये खबर पढ़ कर यकीं मानिए मैं तो बड़ा खुश हुआ था. आप भी सोच रहे होगे कि एक तो बुढिया को कैद हो गई ऊपर से खुश भी हो रहा है और कहता है अच्छा ही हुआ तो पाठकों मैं आपका संशय मिटा ही देता हूँ आप के मन भी कई तरह के सवाल आये होंगे इस खबर को पढते ही कि जज कितना निर्दयी है ९५ सालकी बुढ़िया पर ज़रा भी तरस ना आया मगर नहीं उसने बहुत ही अच्छा किया वो इसलिए एक तो ये बर्निंग का केस उस पर ऐसा घिनौना कृत्य. इस तरह के केश में DYING DECLERATION अहम होती है बाकी के गवाह भले ही गवाही न देने आये तो भी अहम माने जाते है जिसे जज ने भलीभांति देखा और ९५ साल की बुढ़िया पर रहम ना खाते हुए उसे उम्र कैद की सजा सुनाई. ये एक बहुत ही अच्छा फैसला आया है इससे समाज में सन्देश जाएगा और सासू माँओं के कान खड़े होंगे साथ ही बहुएं भी जागरूक होंगी. इस खबर को पढकर मुझे लगभग तीस साल पुराना एक वाक्या याद आ गया. जेल न. एक में उस समय एक जैन परिवार था जो कि गऊ ह्त्या (जेल में जो आरोपी महिला के मर्डर में आता है उसे गौऊ ह्त्या कहा जाता है) में यानी के अपनी बीवी को जलाने के मामले में बंद था और सजा काट रहा था ये मुकद्दमा उस समय का हाई प्रोफाइल केस था और ये माया जैन कांड के नाम से बहुत मशहूर हुआ था असल में हुआ ये था सेशन कोर्ट से लड़के को फांसी और बाकी माँ-बाप,जेठ-जेठानी और नन्द को उम्र कैद हुई थी मगर हाई कोर्ट ने साफ़ बरी कर दिया था मगर विडम्बना देखिये सुप्रीम कोर्ट ने फिर से टांग दिया था यानी सभी को फिर से उम्र कैद हो गई थी.
असल में आप पाठकों को बताना चाहता हूँ कि आखिर ऐसा क्यूँ हुआ ? आप कि जिज्ञासा जायज है, असल में हुआ ये था माया जैन कांड में जो महिला जलाई गई थी वो प्रेग्नेंट थी. उसके पति को तो इसलिए फांसी हुई थी और बाकीयों को उम्रकैद और इस बुढ़िया ने भी आठ महीने के बच्चे को अपनी बहु समेत केरोसिन डालकर जला दिया गया था पति का इसमें कोई कसूर नहीं था मैं तो कहता हूँ घरेलू हिंसा के मामलों में ऐसी सजा होनी चाहिए जैसे कि तालिबान फरमानों में होती है ऐसी सासुओं और पति को जमीन में गर्दन तक गाड़ देना चाहिए और सिर्फ शादीशुदा महिलाओं से तब तक पत्थर मरवायें जब तक ऐसी सासूओं और पति का दम ना निकल जाए.
देखा जाए तो इस बुढ़िया को उम्र कैद होनी ही चाहिए थी अब ये बाकी का जीवन जेल में आराम से काट सकेगी इस उम्र में हाथ-पैर वैसे ही नहीं चलते है खास कर भारतीय बुढ़िया के अब जेल में कम से कम सेवादार तो मिल ही जायेंगे और साथ ही फ्री में हॉस्पिटल कि सुविधाएँ भी. अब इसका बाकी का जीवन मजे से कट जाएगा.
झगडालू सासू माँओं के लिए रेड-अलर्ट!
अभी पीछे ९५ साल की बुढिया को कोर्ट से लाइफ सेंटेंस (उम्र कैद) हुई थी उसके दो तीन दिन बाद ही ८५ साल की बुढिया को सेशन जज ने लपेट दिया दहेज़ के दंश के चलते इन दोनों सासुओं की करतूत माफ़ी के लायक नहीं थी सो हुआ भी एकदम सही फैसला. कुछ लोगों का तर्क है की इस उम्र में लाइफ सेंटेंस के कोई मायने नहीं होते ये सब बेमानी है सबसे बड़ी बात इसका फैसला महज तीन साल में आया है कुछ भी हो इन सजाओं के बहुत मायने है पहला इससे समाज में सकारात्मक सन्देश की जहां कहीं भी घरेलू हिंसा हो रही हो तो उस झगड़े को उग्र रूप धारण करने से पहले बहुएं कानून की सरण में जाएँ दूसरा घरेलू अत्याचार सहने की बजाये उसका डटकर मुकाबला करें नहीं तो आज के समय में ऐसी हिंसाओं की त्रादसी कुछ भी हो सकती है इस केस में एक अच्छी बात ये है की सजा भी हो गई और बुढिया की देख-रेख भी अच्छी हो जायेगी ओल्ड एज होम की बजाय जेल होम ही इन जैसों के लिए अच्छी जगह है वहाँ अस्पताल की सुविधाएँ भी मिलेंगी और दो-चार सेवक भी जेल की तरफ से मिल जायेंगें और कानून ने अपना काम भी कर दिया.पूरी खबर पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें
दूसरे इस प्रकार की हिंसा को को अपने ही दम पर महिलायें हल करने की कोशिश करें ये मैं इस लिए कह रहा हूँ अक्सर देखा गया है वोमेन सेल वाले कैसे न कैसे समझौता करा देते है और तो और परिजन तक अपनी हरकतों से बाज नहीं आते है मगर बाद में उन्हीं के केसों में आगे चलकर बात बिगड जाती है और नतीजे गंभीर निकलते है इस बात की उन्हें कोई परवाह नहीं होती बस भ्ल्मंसाई का तमगा ले लेते है मैं तो यहाँ तक कहता हूँ आज के हालात में मियाँ बीवी और पारिवारिक संबंधों में अगर खटास आ जाए तो उन्हें ढोने की बजाय राजी-खुशी से अलग हो जाएँ तो ज्यादा बेहतर है मानना आपका काम बताना मेरा काम और फिर आप ज्यादा समझदार है क्योंकि पढ़े लिखे है ना. समय-समय पर हौस्लेवाला आपको करता रहेगा आगाह. सन्नाटे को चीरती सनसनी एक बार फिर देगी दस्तक एनबीटी ब्लॉग पर तब तक आप रहिएगा होशियार हौस्लेवाला आपको करता रहेगा खबरदार. ( मेरी मोडरेटर साहब से प्रार्थना है दोनों ख़बरों का लिंक एनबीटी न्यूज़ से देने की कृपा करें)
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