अभी तीन दिन पहले एनबीटी में खबर पढ़ी कि ९५ साल कि बुढ़िया को उम्र कैद हो गई है ये खबर पढ़ कर यकीं मानिए मैं तो बड़ा खुश हुआ था. आप भी सोच रहे होगे कि एक तो बुढिया को कैद हो गई ऊपर से खुश भी हो रहा है और कहता है अच्छा ही हुआ तो पाठकों मैं आपका संशय मिटा ही देता हूँ आप के मन भी कई तरह के सवाल आये होंगे इस खबर को पढते ही कि जज कितना निर्दयी है ९५ सालकी बुढ़िया पर ज़रा भी तरस ना आया मगर नहीं उसने बहुत ही अच्छा किया वो इसलिए एक तो ये बर्निंग का केस उस पर ऐसा घिनौना कृत्य. इस तरह के केश में DYING DECLERATION अहम होती है बाकी के गवाह भले ही गवाही न देने आये तो भी अहम माने जाते है जिसे जज ने भलीभांति देखा और ९५ साल की बुढ़िया पर रहम ना खाते हुए उसे उम्र कैद की सजा सुनाई. ये एक बहुत ही अच्छा फैसला आया है इससे समाज में सन्देश जाएगा और सासू माँओं के कान खड़े होंगे साथ ही बहुएं भी जागरूक होंगी. इस खबर को पढकर मुझे लगभग तीस साल पुराना एक वाक्या याद आ गया. जेल न. एक में उस समय एक जैन परिवार था जो कि गऊ ह्त्या (जेल में जो आरोपी महिला के मर्डर में आता है उसे गौऊ ह्त्या कहा जाता है) में यानी के अपनी बीवी को जलाने के मामले में बंद था और सजा काट रहा था ये मुकद्दमा उस समय का हाई प्रोफाइल केस था और ये माया जैन कांड के नाम से बहुत मशहूर हुआ था असल में हुआ ये था सेशन कोर्ट से लड़के को फांसी और बाकी माँ-बाप,जेठ-जेठानी और नन्द को उम्र कैद हुई थी मगर हाई कोर्ट ने साफ़ बरी कर दिया था मगर विडम्बना देखिये सुप्रीम कोर्ट ने फिर से टांग दिया था यानी सभी को फिर से उम्र कैद हो गई थी.
असल में आप पाठकों को बताना चाहता हूँ कि आखिर ऐसा क्यूँ हुआ ? आप कि जिज्ञासा जायज है, असल में हुआ ये था माया जैन कांड में जो महिला जलाई गई थी वो प्रेग्नेंट थी. उसके पति को तो इसलिए फांसी हुई थी और बाकीयों को उम्रकैद और इस बुढ़िया ने भी आठ महीने के बच्चे को अपनी बहु समेत केरोसिन डालकर जला दिया गया था पति का इसमें कोई कसूर नहीं था मैं तो कहता हूँ घरेलू हिंसा के मामलों में ऐसी सजा होनी चाहिए जैसे कि तालिबान फरमानों में होती है ऐसी सासुओं और पति को जमीन में गर्दन तक गाड़ देना चाहिए और सिर्फ शादीशुदा महिलाओं से तब तक पत्थर मरवायें जब तक ऐसी सासूओं और पति का दम ना निकल जाए.
देखा जाए तो इस बुढ़िया को उम्र कैद होनी ही चाहिए थी अब ये बाकी का जीवन जेल में आराम से काट सकेगी इस उम्र में हाथ-पैर वैसे ही नहीं चलते है खास कर भारतीय बुढ़िया के अब जेल में कम से कम सेवादार तो मिल ही जायेंगे और साथ ही फ्री में हॉस्पिटल कि सुविधाएँ भी. अब इसका बाकी का जीवन मजे से कट जाएगा.
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